इसलिए है भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 102वें नबंर पर

इसलिए है भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में  102वें नबंर पर

नरजिस हुसैन

भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे रहते हैं। इस बात का खुलासा किया इसी महीने आई ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) की रिपोर्ट ने। 117 देशों पर आई इस रिपोर्ट में भारत 102वें नंबर पर है। इस रिपोर्ट में साफ तौर से कहा गया है कि भारत में 6-23 महीने उम्र वाले अधिकांश बच्‍चे हर पैमाने पर कुपोषित हैं, मसलन उम्र के हिसाब से लंबाई कम, वजन कम, बेहद पतले और शिशु मृत्यु दर ज्यादा। इसकी बड़ी वजह बच्चों को उचित मात्रा में खाना न मिल पाना है।

इसे एक गंभीर स्थिति माना जा रहा है क्योंकि कुपोषण बढ़ने से शिशु (5 साल से कम) मृत्यु दर भी बढ़ती है। दुनियाभर में बच्चों के लिए काम कर रही संयुक्त राष्ट्र की संस्था युनीसेफ का मानना है कि यह हालात बताते हैं कि देश में खाद्य सुरक्षा न के बराबर है और इससे तेजी से बीमारियां फैल रही हैं क्योंकि कुपोषित बच्चे बीमारियों की चपेट में जल्दी आते हैं।

इतना ही नही भारत दक्षिण एशियाई देशों में सबसे पिछड़ा है यानी पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल और बंग्लादेश भी इस लिहाज से भारत से बेहतर पायदान पर हैं। हालांकि, पिछले कुछ सालों में भारत ने कुपोषण के स्तर पर अपनी हालत सुधारी है। 2010 में जहां कुपोषित बच्चों की तादाद 42 फीसद थी वहीं 2019 में ये घटकर 37.9 फीसद पर आ गई है।

रिपोर्ट ने भारत को बहुत गंभीर श्रेणी में रखा है जो देश के लिए वाकई परेशान होने की बात है। दरअसल, सरकार की कोशिशों को जल्दी कामयाब न होने की एक बड़ी वजह है इसका आकार और इसकी आबादी। सन् 2000 से ही सरकार ने अलग-अलग कार्यक्रमों के जरिए इन हालात को बदलने के लिए कदम उठा लिए थे लेकिन इतनी बड़ी आबादी में बदलाव की बयार जल्दी नहीं दिखाई पड़ती। सूरतेहाल बेहतर हुआ है इसमें शक नहीं लेकिन, बदलते राजनीतिक समीकरणों में विकास की रफ्तार बीच-बीच में थमती भी रही।

अब अगर बात की जाए उम्र के हिसाब से बच्चे की लंबाई और वजन में कमी तो रिपोर्ट ने बताया कि भारत की हालत इसमें बदतर है। यानी 2010 में देश में ऐसे बच्चे 16.5 प्रतिशत थे जो 2019 में बढ़कर 20.8 फीसद हो गए जोकि काफी शर्मसार करने वाला आंकड़ा है। 2014 में प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत का जो नारा दिया था वह जमीन पर फीका ही रहा और खुले में शौच आज भी भारतीय शहरों और गांवों में जारी है। ये बात इसलिए बतानी जरूरी है क्योंकि साफ-सफाई के बिना गंदगी में रहने वाले ज्यादार बच्चे कुपोषण और शिशु मृत्यु दर का आंकड़ा ऊंचा बनते है। तो ये साफ-सफाई, गंदगी ये किसी भी देश की विकास दर को गिराते हैं।

मौजूदा सरकार ने भी सत्ता में आने पर कई योजनाएं चलाई लेकिन, कहीं इच्छा शक्ति की कमी कहीं धर्म और कहीं किसी अलग तरह से अड़चनें आती रही। इच्छाशक्ति की कमी यानी सरकार बड़ी सरकारी योजनाओं को पैसा और दवाईयां तो दे रही हैं लेकिन, राज्य सरकारें इसमें जोश से हिस्सेदारी नहीं करतीं। फिर जैसे मिड डे मील स्कीम में कुछ साल पहले जब पोषण के मद्देनजर सरकार ने अंडा और दूध भी शामिल किया तो उस समय की मध्य प्रदेश सरकार ने अंडे को धर्म से जोड़कर मिड डे मील से बाहर कर दिया। ऐसे में लक्ष्य को पाना काफी मुश्किल जान पड़ता है।

और जहां तक रिपोर्ट ने जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा की बात की है तो इस हकीकत को कोई नकार नहीं सकता कि बदलते मौसम किस कदर खेती-किसाने के लिए घाटे का सौदा बनते जा रहे हैं। जानकारों का मानना है कि आने वाले समय में मौसम के इस बदलाव से अनाजों में आयरन, प्रोटीन और जिंक तकरीबन न के बराबर मौजूद होगा जिसका खामियाजा इंसान को उठाना पड़ेगा। तो वक्त रहते इसके लिए तैयारी जरूरी है।

 

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